Friday, May 14, 2021

भारत दर्शन

पिताजी के विभिन्न शहरों में तैनाती के कारण मुझे उत्तर भारत के बहुत सारे जगहों को देखने और जानने का मौका मिला लेकिन मेरी देश के प्रति जानकारी केवल उन जगहों की जानकारियों तक ही सीमित थी | बाकी भारत के बारे में जो मालूमात थी उन्हें मैंने विभिन्न किताबों के माध्यम से ही जाना था | इतिहास भी उतना ही  पढ़ा जितना स्कूल में पढ़ाया गया | मेरे  किसी जन्म दिवस पर किसी ने मुझे जवाहरलाल नेहरु की लिखी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया  दे दी थी जिससे  मुझे इतिहास को कुछ अलग तरीके से  समझने का अवसर मिला | लेकिन लिखे हुए को समझने में और अनुभव के आधार पर किसी बात को समझने में बड़ा फर्क होता है | भारत को जानने का पहला अनुभव  मुझे अपने मद्रास प्रवास के दौरान हुआ |  रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही मुझे एक क्षण के लिए महसूस हुआ कि मैं एक  अलग देश में आ गया |अलग सी भाषा और सामाजिक परिवेश  ने मुझे चौका दिया |  मैं तो भारत को केवल अपने नजरिए से  जानता था | मुझे मालूम था कि भारत में बहुत सारी भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन संस्कृति की भिन्नता ने मुझे एकदम से चौंका दिया था | 


मेरे मद्रास प्रवास के दौरान मेरी मुलाकात देश के बड़े दिग्गजों और ज्ञानियों से हुई और मैंने उनसे बहुत लाभ अर्जित किया | बहुत से ऐसे ज्ञानी मित्र मिले जिनकी संगत ने मेरी भाषा ,मेरे ज्ञान को और सुसंस्कृत किया | उन्हीं दिनों मैं इंटरनेशनल थियोसॉफिकल सोसायटी का सदस्य बन गया था और उस समय की अध्यक्ष राधा बर्नियर को सुनने जाया करता था जिससे मुझे दार्शनिकता का ज्ञान हुआ | बाद में किसी ने मुझे रामकृष्ण मठ का रास्ता दिखा दिया और यहीं से मुझे विवेकानंद की पुस्तकों को पढ़ने और भारतीय दर्शन को समझने का अवसर प्राप्त हुआ | मद्रास में पहुंचने के बाद मुझे पहली बार यह भी ज्ञान हुआ कि मैं एक आर्यन हूं और दक्षिण में रहने वाले सभी लोग द्रविड़ है | यह मेरे लिए एक अभूतपूर्व जानकारी थी और इसके पश्चात ही मुझे समझ में आया कि तमिलनाडु की प्रमुख पार्टियों के नाम के आगे द्रविड़ शब्द जैसे द्रविड़ मुनेत्र कड़गम क्यों लगा हुआ है | दक्षिण के तो भगवान भी मेरे लिए नए थे | वह उत्तर भारत के भगवानों की तरह ना दिखते थे ना उनके सरीखे नाम थे | तब मुझे भारत की विशाल विरासत और अभूतपूर्व विभिन्नता का ज्ञान हुआ |साथ में ये कि विभिन्न धर्मो के पश्चात भी हमारी सामाजिक संरचना प्रांतों और भाषाओं के आधार पर विविधताओं से भरी हुई है |

उन दिनों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन थे |उनके बारे में कहा जाता है कि वे रहने वाले श्रीलंका के थे किंतु भारत में आकर बस गए थे और उन्होंने फिल्मों में अपना बहुत बड़ा स्थान बनाया | बाद में राजनीति में सम्मिलित हो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बन गए |उनके प्रति लोगों का आदर अभूतपूर्व था और मैंने ऐसा कभी उत्तर भारत में नहीं देखा | एमजीआर की मृत्यु के बाद उनकी उत्तराधिकारी जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी और उनके बारे में तो सभी जानते हैं| जयललिता को भी राजनीति में वही स्थान प्राप्त था जो एमजीआर को था | मैंने उनके जन्मदिवस में लोगों को उनके घर जमीन पर सड़कों पर लोट के जाते हुए देखा है | दक्षिण मैं उनके और एमजीआर मंदिरों बने हुए हैं | दक्षिण भारत उत्तर भारत से एकदम एकदम भिन्न है | वहां के लोग ना केवल अपनी संस्कृति के प्रति बहुत ही सजग और स्वभाव से बहुत सरल होते हैं | उत्तर भारतीय लोगों की तरह वे दिखावे पर ज्यादा विश्वास ना करते ,पढ़ने लिखने वाले वैज्ञानिक विचार के होते हैं | मद्रास की लोकल ट्रेनों में मैंने लोगों को खड़े-खड़े झूलते हुए पुस्तकें पढ़ते हुए कई स्टेशनों को पार करते हुए देखा है | शायद इसीलिए भारत के बड़े वैज्ञानिकों में आपको ज्यादातर दक्षिण भारतीय ज्यादा मिलेंगे |


भारत में एक और जगह है जिसकी सांस्कृतिक विरासत और बौद्धिक क्षमता पूरे विश्व में परिलक्षित होती है और वह स्थान है बंगाल | बंगाल की संस्कृति अभूतपूर्व और कोलकाता में रहने वाले अधिकांश भद्रजन बहुत ही बुद्धिजीवी हैं |आप उनसे किसी भी विषय पर बात कर सकते हैं और भी बहुत सरल होते हैं उनके अंदर भी दिखावा तनिक सा नहीं होता | बंगाल के लोग बहुत कलात्मक होते हैं उनकी कलात्मकता का नमूना उनकी लिपि में ही मिल जाता है | बंगाली लिपि बहुत ही खूबसूरत और और वाणी बहुत ही मधुर होती है | इसीलिए बंगाल में भारत के सबसे ज्यादा बड़े कलाकार ,साहित्यकार , शिक्षाविद एवं दार्शनिक पैदा हुए हैं |


मुझे कोलकाता जाने का पहला अवसर 90 के दशक में मिला जब मेरे चचेरे भाई भारतीय राजस्व सेवा में चयनित होकर कोलकाता में परिवीक्षा के दौरान तैनात थे | वे रोज कार्यालय जाते वक्त मुझ को अपने साथ ले जाया करते थे | दादा अभूतपूर्व विद्वान और कला के प्रेमी थे और मुझे अपने साथ में लेकर कोलकाता की प्राचीन इमारतों और प्रदर्शनियों घुमा करते थे | उनके साथ रहकर मैंने कोलकाता को बहुत नजदीक से देखा और बंगाल के संस्कृति से परिचित हुआ | कोलकाता में ही मुझे पहली बार मेट्रो और ट्राम में बैठने का अवसर प्राप्त हुआ ,जिसका अनुभव असाधारण है |

एक बार वह मुझे लेकर कोलकाता के हाई कोर्ट में चले गए | दो जजों की डिवीजन बेंच थी और कस्टम विभाग की तरफ से कोई बैरिस्टर साहब मुकदमा लड़ रहे थे | वह अपना पक्ष रखते और उसके बाद तुरंत लॉबी में आ जाते | उनके लॉबी में ही आते बहुत से लोग सिगरेट लेकर उनकी तरफ दौड़ते थे और कोई लाइटर आगे बढ़ा देता था |वह जल्दी से दो चार फूंक मारते और फिर अंदर जाकर बहस करने लगते | इस दौरान जज साहिबान उनका इंतजार करते थे | मेरे लिए एक बहुत आश्चर्यचकित करने वाली घटना थी | मैंने जब दादा से इस विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि डिवीजन के दोनों जज साहब , बैरिस्टर साहिब के चेंबर से ही जीवन की शुरुआत किए थे फिर तो इतना सम्मान शायद स्वाभाविक था | उस समय तो मुझे थोड़ा अटपटा जरूर लगा लेकिन आज जब बड़े वरिष्ठ वकीलों को उच्च और उच्चतम न्यायालय में बोलते देखता हूं तब मुझे उन बैरिस्टर साहिब की याद आ ही जाती है |

मेरे एक मित्र जो भारतीय पोस्टल सेवा में कोलकाता में कार्यरत थे वे बताते हैं कि एक दिन उनसे मिलने पोस्टमैन आया | एक पोस्टल निदेशक से एक पोस्टमैन के मिलने का अमूमन कोई कार्य नहीं होता इसलिए उन्होंने अपने निजी सहायक को उन्हें किसी संबंधित अधिकारी के पास भेजने का निर्देश दिया | लेकिन डाकिया ने उससे मिलने की जिद की तो उन्होंने उन्हें अपने कक्ष में बुला लिया | पोस्टमैन ने उन्हें अपने उन्हें अपने आने का कारण बताया और अपनी पेंटिंग की लगने वाली प्रदर्शनी के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित इच्छा जाहिर की| वे हैरान हो गए एक पोस्टमैन और पेंटिंग | लेकिन उन्होंने पेंटिंग की प्रदर्शनी का मुख्य अतिथि बनना स्वीकार किया | वह बताते हैं कि पोस्टमैन की पेंटिंग देख कर मैं हैरान हो गया |उन्हें आशा नहीं थी पोस्टमैन जैसे पद पर काम करने वाला व्यक्ति इतना बड़ा कलाकार हो सकता है |

लेकिन बंगाल में आपको ऐसे बहुत लोग मिल जाएंगे | शायद इसीलिए भारत के विभाजन के पश्चात पूर्वी पाकिस्तान बहुत लंबे समय तक पाकिस्तान का हिस्सा नहीं रह पाया और बांग्लादेश में परिवर्तित हो गया | भारत के विभाजन के समय पाकिस्तान के बनाने वालों ने उसका आधार धार्मिक बनाया था किंतु वे उसे धर्म के आधार पर चला ना पाए क्योंकि वहां के रहने वाले, अपने पुरातन मूल्यों ,अपनी भाषा और अपनी संस्कृति को छोड़ ना पाए और अपने नए देश का नाम बांग्लादेश ,राजभाषा बांग्ला और रविंद्र नाथ टैगोर की लिखित कविता "आमार सोनार बांग्ला" को देश का राष्ट्रीय गान बनाया।

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