Sunday, May 2, 2021

भारत के प्रधानमत्री

भारत में अभी तक १४ प्रधानमत्री  हो चुके है जिसमे से १२ को मैंने अपने जीवन काल में देखा है।  मेरे काल की पहली प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी  थी | वे बहुत सौम्य , नियंत्रित वाणी एवं रमणीय महिला थी | इन्दिरा जी को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही "प्रियदर्शिनी" नाम दिया  था | सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में अध्ययन  के दौरान उनकी मुलाकात फिरोज़ गाँधी से  हुयी जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी समारोह में इनका विवाह फिरोज़ गाँधी  से हुआ और इन्दिरा को उनका "गांधी" उपनाम  विवाह के पश्चात मिला | ऑक्सफोर्ड से भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं। 1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में कार्य करती रही  | अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं।लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे। गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू कर दिया | 

सत्तर के दशक में देश में जब आपतकाल लग चूका था , श्रीमती इंदिरा गाँधी  से पहला परिचय स्कूल के दौरान हो गया। हुआ यूं कि एक दिन स्कूल में पुलिस आ गयी और बच्चो को एक क्रम में खड़ा कर दिया गया । साथ में सफ़ेद कोट पहने हुए डॉक्टर सरीखे लोग थे। वे बच्चो के हाथ में एक पिस्तौलनुमा वस्तु के आकार से हाथ में कुछ लगा रहे थे और बच्चे रोते चले जाते थे।  मेरा में साथ भी ऐसा ही हुआ ,बिलबिलाते रोते जब हम घर पहुंचे तो पता चला कि वो टीका था जो बिना परिवार की अनुमति के हमें लगा दिया गया था ।  मेरे दाहिने हाथ में आज भी उसके निशान आपातकाल की याद दिलाती है। इंदिरा जी के छोटे बेटे संजय का उन दिनों राजनैतिक धड़े में बड़ा आतंक था लेकिन आम जनता संजय की बड़ी दीवानी थी। एक बार संजय गाँधी आये और गोरखपुर के सिविल लाइन्स के स्टेडियम में उनके सम्बोधन का कार्यकम था। उनके आने से पहले शहर की मुख्य बाजार गोलघर की सारी इमारतों को एक रंग में रंग दिया गया। मैंने सरकारी अधिकारियो में ऐसा खौफ आज तक दुबारा कभी नहीं देखा।  संजय ने देश में जनसँख्या कम करने के नाम पर ना जाने कितनो की जबरिया नसबंदी करा दी जिसका कोई हिसाब नहीं । किशोर कुमार के रेडियो पे गाने पर प्रतिबंध लगा दिया , इंद्र कुमार गुजराल को बेज़्ज़त कर घर से भगा दिया। तुर्कमान गेट में मुस्लिम बस्ती को रातो रात खाली करा दिया। आज की मशहूर अभिनेत्री सारा अली की नानी , और अमृता सिंह की माँ रुकसाना सुल्तान उनकी अभिन्न थी जो उनके सारे क्रिया कलापो में शामिल रहती थी। ऐसे ना जाने कितने किस्से हम रोज सुना करते थे।  मुसीबत तो तब आयी जब मेरे बड़े भांजे के जन्मदिन के अवसर पर आवेश में आकर पिता जी ने इंदिरा जी के खिलाफ कुछ कटु बाते कह दी और महफ़िल में मौजूद कुछ कांग्रेस्सियो ने पुलिस में उनकी शिकायत कर दी। अगर वे सरकारी अधिकारी ना होते तो उन्हें जेल जाने से कोई बचा नहीं सकता था। 

खैर इंदिरा जी ने अचानक आपातकाल ख़त्म कर अचानक चुनाव की घोषणा कर दी और जय प्रकाश जी के नेतृत्व में कांग्रेस (O) , सोशलिस्ट पार्टी , लोकदल ,और जनसंघ का विलय हो नये दल जनता पार्टी का गठन हुआ ।बाबू जगजीवन राम , नंदनी सतपथी , हेमवंती नंदन बहुगुणा सरीके दिग्गज इंदिरा कांग्रेस को छोड़ जनता पार्टी में शामिल हो गए। चुनाव के दौरान इंदिरा जी खिलाफ भारी नाराज़गी थी और हम बच्चे  बक्शीपुर के चौराहे पर हलधर किसान का बिल्ला सभी लोगो को बांटेते थे और शिक्षित करते थे की मोहर इसी पर लगाइये ।  इंदिरा जी चुनाव हार गयी और मोरार जी देसाई सन १९७७ में भारत के नए प्रधानमंत्री बने।


मोरारजी बहुत ही शिक्षित और चतुर राजनैतिज्ञ थे। वे राज्य सिविल सर्विस पास कर गुजरात के गोधरा के डिप्टी कलेक्टर बने लेकिन १९२३ के हिन्दू मुस्लिम दंगे में अपने  ऊपर पक्षपात का आरोप लगने से छुब्ध पद से त्यागपत्र दे दिया और गाँधी जी के आवाहन पर स्वतन्त्रा संग्राम में शामिल हो गए। १९३४ और १९३७ में जब गुजरात राज्य का चुनाव हुआ तो देसाई चुनाव जीत राज्य के राजस्व और गृह मंत्री बन गए और भारत आज़ाद होने के बाद १९५२ में वे बॉम्बे राज्य के मुख्य मंत्री बने । १९५६ में जब भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की बात हुई तो मोररजी उसके खिलाफ थे।  वे बॉम्बे को केंद्र शासित बनाये जाने के पक्ष में थे।  १९५६ में मराठी राज्य की मांग करने वाले सेनापति बापत द्वारा मोर्चा निकाले जाने पर उन्होंने गोली चलाने का आदेश दे दिया , जिससे ११ साल की बच्ची समेत 105 लोग मारे  गए। इसके बाद ही नेहरू जी की केंद्र सरकार ने मराठा राज्य महाराष्ट्र के गठन के लिए सहमति दे दी , जिसकी राजधानी मुंबई बनायीं गयी और मोरार जी को केंद्र में  वित्त मंत्री बना दिया गया । नेहरू जी के मृत्य के बाद मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के प्रबल दावेदार थे ।  शास्त्री जी के मृत्य के बाद मोरारजी ने  पुनः प्रधानमंत्री बनने के लिए बड़ा ज़ोर लगाया लेकिन बाजी इंदिरा जी के हाथ लगी और वे  प्रधान मंत्री बन गयी।  मोरारजी को वित्त मंत्री एवं उप प्रधानमंत्री बनाया गया । किन्ही कारणो से जब इंदिरा जी ने उनसे वित्त विभाग वापस ले लिया तो उन्होंने कांग्रेस से त्याग पत्र दे दिया।

उन्हें मौका मिला आपतकाल के बाद जब वे १९७७ में देश के चौथे प्रधानमंत्री बने। उस समय उनकी आयु  ८१ वर्ष हो चुकी थी।  प्रधान मंत्री बनते ही उन्होंने इंदिरा गाँधी द्वारा किया बयालीसवाँ संशोधन को पुनः संशोधित किया जिससे भविष्य में कोई भी पुनः आपातकाल ना लगा सके। भारतीय संविधान का ४२वाँ संशोधन इन्दिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व वाली कांग्रेस द्वारा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए आपातकाल  के दौरान किया गया था। यह संशोधन भारतीय इतिहास का सबसे विवादास्पद संशोधन माना जाता है। इस संशोधन के द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की उन शक्तियों को कम करने का प्रयत्न किया गया जिनमें वे किसी कानून की संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर सकते हैं। इस संशोधन को कभी-कभी 'लघु-संविधान' (मिनी-कॉन्स्टिट्यूशन) या 'कान्स्टिट्यूशन ऑफ इन्दिरा' भी कहा जाता है।

हालाकि मोरारजी ने पूरा प्रयास किया फिर भी वे संविधान की मूल प्रस्तावना को उसके वास्तविक स्वरुप में लाने में विफल रहे।  संविधान के मुख्य निर्माता डॉक्टर अंबडेकर  भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को संविधान के प्रस्तावना  में डालने के विरुद्ध थे।  १९४६ के संविधान सभा के अधिवेशन की बहस में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा -  " What should be the policy of the State, how the Society should be organised in its social and economic side are matters which must be decided by the people themselves according to time and circumstances. It cannot be laid down in the Constitution itself, because that is destroying democracy altogether. If you state in the Constitution that the social organisation of the State shall take a particular form, you are, in my judgment, taking away the liberty of the people to decide what should be the social organisation in which they wish to live. It is perfectly possible today, for the majority people to hold that the socialist organisation of society is better than the capitalist organisation of society. But it would be perfectly possible for thinking people to devise some other form of social organisation which might be better than the socialist organisation of today or of tomorrow. I do not see therefore why the Constitution should tie down the people to live in a particular form and not leave it to the people themselves to decide it for themselves."

इंदिरा गाँधी द्वारा किया बयालीसवाँ संशोधन ने प्रस्तावना के मूल भाव को ही बदल आंबेडकर के इस चिंतन पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया और इसे उसके वास्तिक रूप में ना ला पाना मोरारजी की जनता पार्टी की एक हार थी। लिहाजा आज भी ये देश के लिए नासूर बना हुआ है क्योकि भारत की सामाजिक परिवेश - और संविधान की मूल भावना में कोई तारतम्य रह ही नहीं गया है।

मोररजी के प्रधानमंत्री काल का और जो मुझे याद है ,वो है विदेश मंत्री बाजपेयी जी का सयुंक्त राष्ट्र के ३२ अधिवेशन में हिंदी में दिया भाषण , उनके द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियो को देश निकाला और RAW को ख़त्म करने का कार्य और ये कि साथ ही ये की वे अपने मूत्र द्वारा खुद की चिकत्सा करते थे। सन १९७९ में  मधु  लिमये , कृष्णा कांत ,और  जॉर्ज  फर्नांडेस ने जनता पार्टी के जनसंघ धड़े के सदस्यों के राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ के सदस्य होने पर आप्पति जताई।  उसके बाद ही  राज नारायण और चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी | इसके पश्चात्  २८ जुलाई १९७९ में इंदिरा कांग्रेस के समर्थन से चौधरी  चरण सिंह भारत के पांचवे प्रधान मंत्री बने और मोरार जी के राजनतिक जीवन का पटाछेप हो गया |

 

क्रमश..

 


1 comment:

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